रांची, धुर्वा। ऐतिहासिक जगन्नाथपुर मंदिर धुर्वा से रथयात्रा की भव्य शुरुआत के बाद शुक्रवार को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र तीनों श्री विग्रह, विधिवत पूजा-अर्चना श्रद्धा के साथ, अपने मौसी घर, मौसीबाड़ी पहुंचे।
इससे पूर्व अहले सुबह से यहां श्रद्धालुओं का मंदिर परिसर और मेले ने जनसैलाब उमड़ा। बूंदा बूंदी हल्की बारिश ने भी लोगों की आस्था को डिगा नहीं सकी। हर कोई रथ को छूने और भगवान को मौसीबाड़ी तक पहुंचाने की लालसा लिए अनुष्ठान में शामिल हुए। पंडितों और श्रद्धालुओं के जयकारों, मंत्रोच्चार और वाद्ययंत्रों की गूंज ने जगन्नाथपुर मंदिर परिसर में भक्तिभाव में सराबोर कर दिया।
मुख्य मंदिर जगन्नाथपुर से लेकर मौसीबाड़ी मंदिर तक का वातावरण भक्तिमय रहा। रथ मेला की भव्य परंपरा के अनुसार हर वर्ष भगवान तीनों भाई-बहन रथ पर सवार होकर मौसीबाड़ी पहुंचे। जहां वे नौ दिनों तक निवास करेंगे। इसके बाद पुनः घूरती रथ के माध्यम से मुख्य मंदिर में वापसी होगी।
जगन्नाथपुर मेला धार्मिक आस्था, मानवता, समर्पण और सामाजिक एकता का प्रतीक : ठाकुर सुधांशुनाथ
जगन्नाथपुर मंदिर न्यास समिति के सदस्य सह मंदिर के प्रथम सेवक व सेवाईत और बड़कागढ़ स्टेट के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी ठाकुर सुधांशुनाथ शाहदेव ने कहा कि रथयात्रा केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह मानवता, समर्पण और सामाजिक एकता का प्रतीक है। भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र नौ दिनों के लिए मौसीबाड़ी गए हैं, जहां नौ दिनों तक गुंडीचा भोग लगेगा। विधि विधान के साथ पूजा की जाएगी। उन्होंने कहा कि यह पर्व हमारे जीवन में शुद्धता, त्याग और धर्म की भावना जागृत करता है। उन्होंने श्रद्धालुओं से अपील किया कि वे श्रद्धा और अनुशासन के साथ रथयात्रा उत्सव में भाग लें और झारखंड की इस सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखें।
क्या है इतिहास :
ठाकुर सुधांशुनाथ शहदेव ने बताया कि साल 1691 में बड़कागढ़ रियासत के नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शहदेव द्वारा शुरू की गई। रथयात्रा की यह पौराणिक परंपरा अनुष्ठान अबतक चली आ रही है। जगन्नाथपुर रथ मेला आयोजन की भव्यता और श्रद्धालुओं की भागीदारी समय के साथ लगातार बढ़ती जा रही है। वक्त आ गया है अब इसे वैश्विक स्तर पर पूरी मंदिर की तर्ज पर पहचान दिलाने की दिशा में सरकार उत्तरदायित्व के निर्वहन करें।
धार्मिक आस्था परंपरागत जीवन शैली की अनूठी मिशाल :
मेले का यह रूप न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करता है, बल्कि यह ग्रामीण जीवन की समृद्ध विरासत और कारीगरी को भी सामने लाता है। तभी तो मेले परिसर में यहां पईला, मांदर, ढोल, नगाड़ा, झंझरा, तीर-धनुष, कुंबनी जैसी आकर्षक वस्तुएं नजर आई। 4000 रूपए की मांदर से लेकर 3000 से 4500 रूपये तक के नगाड़े ढोलक की बिक्री की अनूठी झलकी दिखी।
परंपरागत चीजों की खरीददारी करने की होड :
रथ मेले में गाय, बकरी और भैंस के गले में बांधने वाली बेल घंटियों की झंकार, चावल छाननेवाली झंझरा समेत अन्य चीजों से सजी चीजों ने मेले ने को एक अलग ही पहचान दे रही। दूर-दराज के इलाकों से आए लोग पारंपरिक चीजों की खरीदारी में व्यस्त दिखे। ये वस्तुएं न सिर्फ ग्रामीण संस्कृति की पहचान हैं, बल्कि सैकड़ों कारीगरों की जीविका का साधन भी हैं। तय है रथ मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और पारंपरिक जीवनशैली का संगम है। जिसके सफल आयोजन के लिए जिला प्रशासन रांची और जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति ने अहम भूमिका निभाई।